मेजारोड सोरांव में रामलीला का भव्य समापन, रावण वध के बाद हुआ श्रीराम का राज्याभिषेक
लेखक: कुमार सत्यम गौड़
मेजारोड/प्रयागराज: सोरांव।गाँव में चल रही ऐतिहासिक रामलीला का समापन शुक्रवार को रावण वध के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के राजतिलक के साथ बड़े ही धूमधाम और धार्मिक उत्साह के बीच सम्पन्न हुआ। पूरे मैदान में “जय श्रीराम” और “रामचंद्र की जय” के उद्घोष गूंजते रहे। गाँव और आस-पास के इलाकों से आए श्रद्धालु इस अद्भुत दृश्य को देखकर भाव-विभोर हो उठे। समापन की रात मंच पर पहले रावण और श्रीराम के बीच भीषण युद्ध का मंचन किया गया। रावण वध के साथ ही धर्म की असत्य पर विजय का संदेश जब दर्शकों तक पहुँचा तो तालियों और जयघोष से पूरा पंडाल गूंज उठा। इसके पश्चात भगवान श्रीराम के राज्याभिषेक की झांकी प्रस्तुत की गई, जिसमें प्रभु के मस्तक पर मुकुट धारण करवाकर उनके आदर्श राजधर्म का संदेश दिया गया। यह दृश्य इतना मनमोहक था कि उपस्थित श्रद्धालु भावुक होकर जयघोष करने लगे।
रामलीला का यह समापन केवल एक सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि धर्म, नीति और आदर्शों का जीवंत उदाहरण माना गया। आयोजकों ने कहा कि रामलीला से हमें जीवन में सत्य, धैर्य और मर्यादा का पालन करने की शिक्षा मिलती है।
कार्यकर्ताओं का हुआ सम्मान
समापन अवसर पर एक भव्य सम्मान समारोह आयोजित किया गया। रामलीला के अध्यक्ष एवं ग्राम प्रधान संघ अध्यक्ष उरुवा तथा ग्राम प्रधान सोरांव राजेश द्विवेदी, डायरेक्टर राम आसरे द्विवेदी और संचालक प्रभाशंकर (रिंकू) ओझा ने सभी कार्यकर्ताओं को अंगवस्त्र भेंट कर सम्मानित किया।
इस सम्मान समारोह में विशेष रूप से जिन कार्यकर्ताओं का सम्मान किया गया, उनमें लालजी द्विवेदी, रामभवन द्विवेदी, राजनाथ द्विवेदी, उमाशंकर चिरकुट द्विवेदी, श्री गणेश द्विवेदी, विजय शंकर द्विवेदी, उमाशंकर द्विवेदी, जुगेश द्विवेदी, रामसागर द्विवेदी, दीपक द्विवेदी, रामगोपाल द्विवेदी, पंकज द्विवेदी, महेश चंद्र द्विवेदी, नंदू ओझा, बलदाऊ ओझा, रामसागर वर्मा,पीयूष मिश्रा, धीरज द्विवेदी, सत्यम द्विवेदी, शैलेश द्विवेदी, श्यामसुंदर दुबे, चंद्रमा प्रसाद दुबे (गोलू), रक्षित द्विवेदी, राजाबाबू द्विवेदी, दिलीप द्विवेदी, छोटू द्विवेदी, अनुज शुक्ला, रानू विष्वकर्मा, दिलीप द्विवेद, पीयूष द्विवेदी सहित अन्य सहयोगियों के नाम प्रमुख रहे। इन सभी ने न केवल रामलीला को सफल बनाने में अपना योगदान दिया बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को जीवंत रखने का कार्य भी किया।
धार्मिक माहौल में डूबी रही फिजा
गाँव का वातावरण पूरे आयोजन के दौरान धार्मिक और सांस्कृतिक रंगों में रंगा रहा। महिलाएँ, बच्चे और बुजुर्ग सभी ने पूरे उत्साह के साथ हिस्सा लिया। समापन पर की गई भव्य आरती ने श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया। ग्रामीणों ने इसे विजयादशमी पर्व का सजीव रूप माना और इसे धर्म की असत्य पर विजय का प्रतीक बताया।
आयोजक राजेश द्विवेदी ने संदेश दिया कि ऐसी रामलीलाएँ केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं बल्कि समाज को सही दिशा देने का कार्य करती हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जीवन प्रत्येक व्यक्ति को आदर्श, सत्य और धर्म की राह पर चलने की प्रेरणा देता है। मंच संचालक प्रभाशंकर(रिंकू) ओझा ने कहा कि सोरांव की इस ऐतिहासिक रामलीला ने न केवल धार्मिक चेतना जगाई बल्कि एकता, भाईचारे और सामाजिक समरसता का संदेश भी दिया।

