मां दुर्गा के नौ रूपों के पीछे तात्विक अवधारणाओं का परिज्ञान – अनुराग पांडेय
रिपोर्ट: अतुल तिवारी
नवरात्रि के पावन अवसर पर दुर्गा पूजा में देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-अर्चना विशेष महत्व रखती है। इनके पीछे छिपी तात्विक अवधारणाएँ धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक मानी जाती हैं।
शिक्षक अनुराग पांडेय ने बताया कि नवरात्र की प्रथम देवी माँ शैलपुत्री हैं। दुर्गा के इसी रूप की सर्वप्रथम पूजा की जाती है। हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नाम शैलपुत्री पड़ा। यह देवी वृषभ पर आरूढ़ रहती हैं, इसलिए इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी सती के नाम से भी प्रसिद्ध हैं।
पांडेय ने कहा कि माँ शैलपुत्री का स्वरूप भक्तों को धैर्य, साहस और निष्ठा का संदेश देता है। इनकी पूजा से साधक को आत्मबल और जीवन में स्थिरता प्राप्त होती है। नवरात्र के प्रथम दिन शैलपुत्री की उपासना से शक्ति की साधना प्रारंभ होती है, जो आगे चलकर नवदुर्गा की संपूर्ण साधना तक पहुँचाती है।
मंदिरों और पूजा पंडालों में भक्तगण बड़े श्रद्धा और भक्ति भाव से माँ शैलपुत्री की पूजा कर रहे हैं। वातावरण जय माँ परमेश्वरी और माँ संकरी कल्याण करो के जयघोष से गूंज रहा है।
