खेती- किसानी पर बजट घटा, किसान होंगे बदहाल: राजीव चन्देल



                 कृषि बजट में की गई है कटौती-राजीव चंदेल

खेती- किसानी पर बजट घटा, किसान होंगे बदहाल:   राजीव चन्देल






 प्रयागराज।
शनिवार को पेश हुये केंद्रीय बजट में खेती- किसानी पर हिस्सेदारी घटाने पर भारतीय किसान यूनियन( भानु) के मंडल अध्यक्ष राजीव चन्देल ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त किया।
 राजीव ने कहा कि आंकड़ों की जादूगरी से कृषि बजट को बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया जा रहा है। जबकि इस बजट से खेती-किसानी और किसानों को कोई खास फायदा नहीं होने वाला है। ग्रामीण अर्थ व्यवस्था पहले की तरह ही सुस्त रहेगी और खेती-किसानी पर निर्भर 70 प्रतिशत आबादी की क्रय शक्ति और घटेगी। इससे पूरे देश में मंदी बढ़ेगी। पहले से खस्ताहाल अर्थ व्यवस्था और चौपट होगी।
आगे उन्होंने कहा कि कृषि बजट में खेती-किसानी, सिंचाई व अन्य सभी योजनाओं को मिला कर 2.83 लाख करोड़ रुपये दिया गया है। पिछले वर्ष यह 2.66 लाख करोड़ था (1, 30, 485 करोड़ मूल बजट तथा बाद में प्रमं किसान सम्मान योजना का 75000 करोड़ व अन्य मिला कर  ) । देखने से तो यह लग रहा है कि करीब 17000 करोड़ ज्यादा है, लेकिन इस बीच बढ़ी मंहगाई की तुलना में यह पिछले वर्ष के बराबर ही है। इस आंकड़े को प्रतिशत में निकालें तो सम्पूर्ण बजट में से खेती-किसानी की हिस्सेदारी 9.3 प्रतिशत है। पिछले वर्ष यह 9.6 प्रतिशत थी।
आंकड़ों से स्पष्ट है कि खेती- किसानी में वर्तमान सरकार ने 3 प्रतिशत हिस्सा कम कर दिया।
जबकि इस समय- 'बजट 2020-21से -किसानों को बड़ी राहत की उम्मीद थी। लेकिन उनकी उम्मीदों पर पानी फिर चुका है।



उदाहरण के तौर पर देखा जाय तो जहां प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना में पिछले वर्ष 75000 करोड़ रुपये का बजट रखा गया था, इस साल 2020-21 के बजट में भी मात्र उतना ही बजट दिया दिया गया है, जो कि नाकाफी है।  पीएम आशा खेती-किसानी के लिये सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है, लेकिन इस स्कीम में भी कटौती करके पहले 1500 करोड़ की जगह इस साल इसके लिये मात्र 500 करोड़ रुपये ही दिया गया। वहीं एमआईएस के बजट में पहले 3000 करोड़ की जगह इस बार- सिर्फ 2000 करोड़ रुपये दिया जा रहा है। मनरेगा में कोई नया बजट नहीं। बल्कि पिछले वर्ष खर्च हुये 71000 करोड़ की तुलना में केवल 61000 करोड़ रुपये दिये गये हैं। मनरेगा में बजट की कटौती से मजदूरों के जीवन स्तर में सुधार की रफ्तार कम होगी। मजदूरों के हाथ में पैसा जाने से क्रय शक्ति बढ़ने के चांस थे। लेकिन सरकार ने ओर कोई खास फोकस नहीं किया।
कुल मिला कर केंद्रीय बजट में खेती-किसानी और किसानों की बड़ी चालांकी से उपेक्षा की गई है।
सम्पूर्ण बजट में कृषि बजट घटाना, अर्थ व्यवस्था की सेहत के लिये शुभ संकेत नहीं है। अनाज के क्रय पर सरकार की कोई स्पष्ट नीति और बजट नहीं है।





यहां साफ तौर पर कहा जा सकता है कि पूरे
बजट में ग्रामीण अर्थ व्यवस्था को महत्व नहीं दिया गया।
जबकि पूंजीपतियों को कई तरह की सहूलियतें दी गई हैं। वित्त मंत्री ने बड़े गर्व के साथ कॉरपोरेट टैक्स 22 प्रतिशत से घटा कर 15℅ कर दिया। इसके लिये पिछले छह माह से पूंजीपतियों ने सरकार पर दबाव बना रखा था।
वित्त मंत्री द्वारा यह घोषित करना कि अाने वाले वित्तीय वर्ष में जीडीपी ( GDP) की अनुमानित विकास दर 10 प्रतिशत पहुंच जायेगी, एक दिवास्वप्न है। बजट पेश करने के दौरान ही सूचकांकों में भारी गिरावट जारी थी, जो एक कम महत्व के बजट की ओर संकेत था। बाजार डगमग डमगम डोल रहा था।
भारतीय किसान यूनियन (भानु) के मंडल अध्यक्ष राजीव चन्देल ने कहा कि वर्तमान बजट में खेती किसानी को संकट से निकालने के लिये कोई उपाय नहीं किया गया। कृषि में बढ़ रही लागत खतरनाक स्थिति तक पहुंच गई है। साल- दर साल घाटा सह रहे किसानों का धैर्य अब टूट रहा है। फसली लोन (kcc) न चुका पाने के कारण पहले से ही किसान अात्म हत्या कर रहे हैं, इस बजट से परिस्थिति और प्रतिकूल होगी। जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दावा करते हैं कि वह किसानों की आय दोगुनी करेंगे, वहीं बजट में खेती-किसानी की हिस्सेदारी घटाई जा रही है।
भारतीय किसान यूनियन (भानु) कृषि बजट की असलियत बताने के लिये गांव- गांव में परिचर्चा आयोजित करेगी और किसानों को इसके लाभ- हानि के विषय में बतायेगी।

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